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Toggleअसम के जोरहाट जिले की घटना ने देश को सोचने पर मजबूर कर दिया | Zomato Delivery boy police case
असम के जोरहाट जिले में 21 अप्रैल 2025 को एक Zomato Delivery boy police case दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। एक वायरल वीडियो में देखा गया कि एक पुलिसकर्मी एक जोमैटो डिलीवरी एजेंट को बेरहमी से पीट रहा है। यह वीडियो एक राहगीर ने अपने मोबाइल से रिकॉर्ड किया और सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया। कुछ ही घंटों में यह वीडियो देशभर में वायरल हो गया।
वीडियो वायरल होते ही गुस्से की लहर
इस वीडियो के सामने आते ही ट्विटर पर #JusticeForDeliveryBoy ट्रेंड करने लगा। लोगों ने न सिर्फ पीड़ित डिलीवरी बॉय के लिए इंसाफ की मांग की, बल्कि उस व्यक्ति की भी तारीफ की जिसने यह वीडियो सार्वजनिक किया। सोशल मीडिया के बढ़ते दबाव के चलते पुलिस हरकत में आई, और घायल डिलीवरी एजेंट को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया।
घटना के पीछे की वजह और सवाल
आरोप है कि डिलीवरी एजेंट ने ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन किया था, हालांकि अभी तक इस आरोप के कोई ठोस सबूत सामने नहीं आए हैं। पुलिसकर्मी ने उसे सरेआम ना केवल अपमानित किया बल्कि जमीन पर गिराकर पीटा और घसीटा भी। उस वक्त मौजूद लोग सिर्फ मूक दर्शक बने रहे। यदि यह वीडियो वायरल नहीं होता, तो क्या प्रशासन कोई कदम उठाता? यह सवाल अब हर किसी के मन में है।
डिलीवरी बॉय: मेहनत का चेहरा, व्यवस्था का शिकार
डिलीवरी एजेंट आज हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुके हैं। तेज़ ट्रैफिक, खराब मौसम और समय की मार के बीच वे अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं। अधिकतर डिलीवरी बॉय आर्थिक रूप से कमज़ोर तबके से आते हैं। उनके पास न तो ठोस बीमा होता है और न ही कोई सामाजिक सुरक्षा।
Zomato Delivery boy police case घटना में पीड़ित एजेंट के परिवार को अब कानूनी मदद और आर्थिक सहायता दोनों की आवश्यकता है। यह समय है जब व्यवस्था को जवाब देना ही होगा।
क्या ये आख़िरी बार होगा? सुधार की आवश्यकता
अब यह ज़रूरी हो गया है कि पुलिस प्रणाली में बदलाव लाया जाए। पुलिसकर्मियों को सिर्फ कानून की जानकारी ही नहीं, बल्कि मानवीय व्यवहार और शांति की ट्रेनिंग भी दी जानी चाहिए। अधिकार का मतलब यह नहीं कि किसी को सरेआम पीटा जाए।
उत्तरकाशी में महिला गंगा नदी में रील बनाते समय बह गई
प्रशासन को सोचना होगा कि डिलीवरी एजेंट्स के लिए नए कानून बनाए जाएं, उन्हें सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया जाए ताकि वे किसी भी आपात स्थिति में मदद पा सकें।घटना तो बीत गई, लेकिन अपनी छाप छोड़ गई। अब यह समाज और व्यवस्था दोनों की परीक्षा है।
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